गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

प्राची की तलाश...


           ये कविता गुरुदेव दीपक बाबा और  उनकी काल्पनिक नायिका 
                                      प्राची  के चरणों में समर्पित है.. 
                                                


मन क्यों उदास है??
शायद इसे किसी की तलाश है!
ये जानता है वो है इससे बहुत दूर,
फिर भी ढूंढता  उसे अपने आस पास है|
मन क्यों उदास है???

                   
शायद ये तलाश मे है उस परछाई के….
                    
जिसे इसके आस्तित्व पर ही अविश्वाश है|
                   
शायद इसे अपनी मुट्ठी मे ,
                   
सूखी रेत को बंद करने की आस है|
                   
मन क्यों उदास है????
वो कही नहीं है,
इसे इसका एहसास है.
फिर भी वो मिलेगा इसे,
इसे इसका विश्वास है|
मन क्यों उदास है???






शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011

एकाकी रिश्ते

इन रिश्तो के अनुबंधों में,जब एकाकी हो जाता हूँ,
जब अपनी ही परछाई को,खुद से ही उलझता पाता हूँ
तब जीवन जीने की इच्छा,कुछ और प्रबल हो जाती है.
जब अपनी ही खुद की छाया, खुद से ही बड़ी में पाता हूँ
इन रिश्तो के अनुबंधों में,जब एकाकी हो जाता हूँ

ये रिश्ते तो ऋतुओं जैसे,झट पतझड़ में मुरझाते हैं,
जो जीवन में हो ऋतु बसंत,ये प्रेम पुष्प बिखराते हैं
इस हार जीत के रिश्तों में,जब पीछे में रह जाता हूँ,
कही दूर किसी कोने में जा,खुद की ही ऋचाएं गाता हूँ
इन रिश्तो के अनुबंधों में,जब एकाकी हो जाता हूँ

कुछ लिखूं बोलू या मूक रहूँ,इन रिश्तों का क्या रूप कहूँ??
रिश्तों के इस अवशेषी घट को,मैं हार कहूँ या जीत कहूँ??
जब जाह्न्वी के तट पर बैठा,इस घट को डुबोने जाता हूँ,
तब मोक्ष प्राप्ति की ये इच्छा,कुछ धुंधली सी हो जाती है,
मैं  नैनों के इस जलधि प्रवाह को,रोक नहीं फिर पाता हूँ,
इस घट को माथे से ही लगा,अपना प्रणाम पहुचता हूँ
इन रिश्तों के अनुबंधों में,जब एकाकी हो जाता हूँ