शनिवार, 26 मार्च 2011

कवि के शब्द

ये शब्द मेरे हैं अमर सदा,
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं...
हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे,
निज संजीवन से जिलाया है...
निष्प्राण सरीखी काया को,
फिर विजय कवच पहनाया है.......


हर बार इन्ही शब्दों ने मुझे प्रेरणा दी है....
इन रिश्तों के कोलाहल में,
अपने मन की कुछ कहने की
अपने मन की कुछ करने की….

इन शब्दों की जननी पीड़ा,
पीड़ा के उर से ये निकले..
ये शब्द मेरे प्रह्लाद सरीखे
हर अग्निपरीक्षा में हैं खरे…..

इन शब्दों की ही महिमा से,
मानवता का है कलुष धुला..
ये शब्द बन गए नीलकंठ,
मुझको पीड़ा का गरल पिला….


इस जलधि शब्द के ये प्रवाह
हर बार मुझे ये कहते हैं..
ये शब्द मेरे हैं अमर सदा,
ये शब्द नहीं मर सकतें हैं….

रविवार, 13 मार्च 2011

कुछ बातें कृष्ण से

मित्रो,मेरी एक बुरी आदत है कविता लिखने से पहले प्रसंग लिखना.. हम सभी के जीवन में ऐसा समय आता है जब हम अपने ही रिश्तो,भाई बंधुओं को अपने सामने शत्रु बना पातें है...कई लोग महाभारत के अर्जुन की तरह इस कशमकश में पड़ जातें है की अपनों से कैसे टकराएँ कैसे उनपर शस्त्र उठाएं.. कलयुग के अर्जुन( शायद में उसमें अपनी छवि देखता हूँ,शायद आप भी) का कृष्ण से कुछ प्रश्न या दुविधा इस कविता के माध्यम से व्यक्त कर रहा हूँ..आशा है आप को पसंद आये...
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कुछ बातें कृष्ण से

हे कृष्ण मुझको बतला दो,
इस कलयुग के महाभारत में..
मैं कैसे शस्त्र उठाऊंगा…
जब नकुल भीम और कुंती को,
कौरव सेना में पाऊंगा………..


पांचाली हो या गांधारी,
या हो दुर्योधन अत्याचारी..
सब एक साथ हैं खड़े हुए….
हे कृष्ण यही है द्वन्द मेरा,
कोई कैसे इनसे युद्ध लड़े………….

हे केशव मुझको मुक्त करो,
इन धर्म सत्य की बातों से…
मुझको कुंठा से होती है,
इन गीता के उपदेशों * से….
इस युग की धर्मपरीक्षा में,
मैं अधर्मी ही कहाऊंगा…
ये नर नारी सब अपनें हैं,
मैं फिर वनवास को जाऊंगा…
तुम भी रणछोर कहाये थे,
मे तुमको ही दोहराऊंगा…

इस पांचजन्य के शंखनाद को, रोको
मेरी कुछ सुन लो…..
इस धर्म अधर्म की गीता में ,
जा कर कुछ नए श्लोक गढ़ों….
यदि गीता के परिशोधन में,
हे कृष्ण तुम्हे कठिनाई हो…
कौरव सेना तैयार खड़ी,
तुम जाकर उनके साथ मिलो..
फिर भूल तुम्हारी महिमा को,
मै फिर गांडीव उठाऊंगा…….



चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………
चाहे विजय मिले या वीरगति,
मैं तुम पर शस्त्र चलाऊंगा………



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माननीय कौशलेन्द्र जी के सुझाव का आभार
उनके कहे के अनुसार में पंक्तिया बदल रहा हूँ..
पूर्व पंक्ति: मुझको कुंठा सी होती है इन गीता के एहसासों से
संपादन के बाद: मुझको कुंठा सी होती है इन गीता के उपदेशों से..

धन्यवाद् कौशलेन्द्र जी
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