शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010

जेहाद




जेहाद जेहाद जो करते है,जेहाद का मतलब क्या जाने?
ये रक्त पिपाशु दरिन्दे है,मानवता क्या है,क्या जाने?
इन्सान की बलि चढाते है,ये मजहब क्या है,क्या जाने?
ये झूठे मुस्लिम बनते है,इस्लाम का मतलब क्या जानें ?
कश्मीर मे हो या अमरीका,इनका तो इक ही नारा है,
हत्या ही हमारा पेशा है, हत्या ही धर्म हमारा है|
ये नर मुंडो की मस्जिद मे खूनी नमाज को पढ़ते है.
अपने पापों का प्रश्चित भी गोहत्या करके करते है |





















गौहत्या ये करवाते हैं.ये राष्ट्रधर्म को क्या जाने?
ये बाबर की औलादें हैं.., हिंदुत्व की गरिमा क्या जाने ??
कश्मीर ये हमसे ले लेंगे,इस दिवास्वप्न मे जीतें हैं...
कश्मीर हमारी गरिमा है,नामर्द मुजाहिद क्या जाने..
कुछ खैराती डालर से तुम.कितने भी बम बनवाओगे
गौरी अब्दाली भीख मिली,ब्रम्होश कहाँ से लाओगे ….
गौरी गजनी और शाहीन से कश्मीर भला क्या पाओगे,
तब बंगलादेश गंवाया था,अब पाकिस्तान गँवाओगे…



ये फिदायीन ये मानव बम, कुछ काम नहीं आ पायेंगे..
भों भों करते ये जेहादी कुत्ते..
शिव तांडव से क्या टकरायेंगे...
गर अबकी मर्यादा लांघी,तो अपनी कब्र बनाओगे ..
इकहत्तर मे था छोड़ दिया,इस बार नहीं बच पाओगे..


ऐ धूर्त पडोसी खुद देखो,
अपने आँगन की लाशों को
घुट घुट कर जो दम तोड़ रहे
उन बच्चो के एहसासों को
अब अपने कितने बच्चों की
तुम बचपन बलि चढाओगे
खुद की दुनिया तो जल ही गयी
क्या बच्चों को भी जलाओगे ………


इन नन्हे नाजुक हाथों में
कुछ गुड्डे गुडिया ला कर दो..
जेहाद, फ़िदायीन, मानव बम
ये नन्हा बचपन क्या जानें.........

जेहाद जेहाद जो करते है,जेहाद का मतलब क्या जाने?







"आशुतोष नाथ तिवारी"







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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

अयोध्या का सेकुलर कवि और रामभक्त



पिछला १ हफ्ता काफी वयस्त रहा.. मगर मन राम मंदिर के निर्णय पर लगा हुआ था जैसा की हर हिन्दुस्तानी का था...कुछ सेकुलर लोग और खबरिया चैनल बार बार कहते रहे की अयोध्या मुद्दा ख़तम हो चुका है... अरे भाई अगर ख़तम हो चुका है तो ये अपना समाचार का भोपू बंद करो और कुछ और दिखाओ...
सच ये है की राम हमारे अन्दर ही विराजमान है और उस सत्ता को ख़तम करना इन तुस्टीकरण के पुजारियों और मैकाले के अनुयायियों के बस की बात नहीं...
फिर भी एक बार मैने भी सेकुलर बनने की कोशिश कर ही डाली...आज का तथाकथित सेकुलर (या आप उसे हिन्दू विरोधी कह लें............
काफी दिनों से अयोध्या पर कुछ लिखने की सोच रहा था सोचा सेकुलरिज्म के रंग मे लिख डालू कुछ राम पर.... लेकिन कुछ पंक्तियाँ लिखने के बाद मेरे अन्दर का राम भक्त बार बार मुझे उद्वेलित करता था.... वह मुझे याद
दिलाता था बाबर और औरन्जेब के अत्याचारों का... वह मुझे याद दिलाता था रानी पद्मिनी के जौहर से लेकर कश्मीरी पंडितों की व्यथा कथा... इसी द्वन्द के बिच लिखी है मैंने ये कविता.....





कश्मीर से अयोध्या तक
बस संगीनों का साया है
हे राम तुम्हारी नगरी में,
कैसा सन्नाटा छाया है...













ऐसी तो अयोध्या न थी कभी,
जहा मानवता की चिता जले..
इस मर्यादा की नगरी में,
सब खुद की मर्यादा भूले





हे राम तुम्हारी सृष्टी में
हैं कोटि कोटि गृह बसे हुए..
इस गर्भ गृह की रक्षा में,
आखिर अब कितनी बलि चढ़े...


इन लाशों के अम्बारों पर
बाबर और बाबरी बसतें हैं...
यहाँ हनुमान हैं कई खड़े...
जो राम ह्रदय में रखतें हैं...


इन विघ्नों के आवर्तों से
हम नहीं कभी अब तक हैं डरे...
हमने दधिची को पूजा है,
जो वज्र ह्रदय में रखतें हैं..

इस राम कृष्ण की धरती पर
हम भगवा ध्वज लहरायेंगे
ये हिन्दू धर्मं सनातन है
हम हिन्दू धर्म निभायेंगें

आहुति अब पूरी होगी
हम अश्वमेध को लायेंगे
जो जन्म भूमि है राम की...
वहां राम ही पूजे जायेंगे..

एक नहीं दो बार नहीं हर बार यही दोहरायेंगे
सौगंध राम की खाते हैं,हम मंदिर वहीँ बनायेंगे...
सौगंध राम की खाते हैं,हम मंदिर वहीँ बनायेंगे...



"आशुतोष नाथ तिवारी"