सोमवार, 20 सितंबर 2010

वनवास


इक निःशब्द उच्छवाश
करता है ये एहसास …..
जैसे सभी के बीच रहते हुए,
किसी ने ले लिया है वनवास|

जैसे पिंजडे मे बंद पंछी..
फडफडाता है अपने पंखो को,
यह सोच कर..
की उडने को खाली पड़ा है,
विस्तृत आकाश|


इक निःशब्द उच्छवाश|



"आशुतोष नाथ तिवारी"

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